Hello ! फार मोठ्या काळा नंतर मी लिहित आहे .पुन्ह मैत्री जोडू या का ?
हिंदी भाषेत लिहित आहे . वाचाल?…. संगीता जोशी
हिंदी भाषेत लिहित आहे . वाचाल?…. संगीता जोशी
Bal Vikas---1.
थॉमस कार्लाईल एक जाना माना
फ्रेंच इतिहास-तज्ज्ञ था। पूरे अभ्यास के साथ उसने ‘फ्रेंच राज्यक्रांती’
विषय पर पुस्तक लिखा। बडी मेहनत के साथ उसने यह काम पूरा किया था । उसे विश्वास था
कि आनेवाले कल में उसकी यह किताब एक संदर्भ-ग्रंथ के रूप से पहचानी जाएगी । उस ग्रंथ का लेखक होनेके
नाते उसकी बडी सराहना होगी । उसे नाम मिलेगा; एक अलग पहचान मिलेगी । काम पूरा होने
के आनंद में अपनी किताब उसने, अपने मित्र जॉन स्टुअर्ट मिल के हाथों मे सौंप दी ।
और कहा,
‘ जॉन, मेरे दोस्त, तुम यह किताब पढ लेना; और तुम्हारी राय उसपर जरूर लिख
देना । मेरेलिए वह बहुत कीमती होगी । आखिर तुम भी तो मशहूर लेखक हो । ‘
जॉन ने मित्रता का सम्मान रखते हुए किताब—(याने हाथ से लिखे हुए बहुत से
कागज--) ले ली ।
कुछ दिनों बाद जॉन थॉमस के घर आया । थॉमस ने बडी उत्सुकता से पूछा, ‘कैसी
लगी किताब? तुम ने तुम्हारा अभिमत तो लिख दिया न?’
जॉन खामोश रहा । उसका चेहरा भी उतरा हुआ था । उसकी चुप्पी देखकर थॉमस ने
घबराकर पूछा, ‘ क्यों? सब ठीक तो है? क्या हुआ ? बोलो तो सही ! ‘
जॉन ने जो बताया वह इसप्रकार था ।
जॉन ने जिस टेबल पर वह कागज की गठरी रक्खी थी उसी टेबल पर पुराने बेकार
कागजात भी पहलेसे रक्खे हुए थे। घर के नौकर को यह बात मालूम होने की कोई गुंजाइश न
थी कि इस में कोई काम के पेपर्स भी होंगे ! एक दिन उसने सब कागजात जला डाले; जिनके
साथ थॉमस की किताब भी खाक होकर रह गई। अब किसी भी उपाय से वे कागजात हासिल कराना
नामुमकिन था ।
जॉन की बात सुनकर थॉमस केवल हैरान ही नहीं, नाउम्मीद हो गया।लेकिन जो हो
चुका था उसका कोई चारा न था । अपने मित्र को दोष देकर उसे दुखी करना थॉमस को मंजूर
नहीं था । गलती किसी से भी हो सकती है । जॉन के चले जाने के बाद थॉमस ने सोचा, ‘कागज
जल गये तो क्या? मेरे जहन में तो सब कुछ तैयार ही है । हां, लेकिन पूरे तीन खंड
पुनः लिखने में काफी वक्त तो लगेगा। लेकिन मैं कर सकता हूं ।‘
मन का विश्वास और दृढनिश्चय के साथ थॉमस ने फिर से ‘फ्रेंच राज्यक्रांती’
किताब लिखना शुरू किया । उसने दिन रात उसमें लगा दिये । न भूख लगती थी न प्यास ।
एक ही लगन । लिखते रहना । दिन बीत गये...फिर महीने...बरस । आखिर दो बरस के बाद
उसकी किताब तैयार हो गई । वह भी तीन खंडों में ! जैसे पहले बनी थी बिल्कुल वैसी ! फिर
उसने जॉन को किताब दिखाई । उसकी राय भी हासिल कर ली और किताब शायां भी हो गई
।पुस्तकों के क्षेत्र में इस किताब को इतना नवाजा गया कि आज भी फ्रेंच
राज्यक्रांती के विषय में कुछ जानकारी लेने की आवश्यकता पडती है, तो थॉमस कार्लाईल
की उसी किताब आधार मानी जाती है ।
दोस्तों, यह ध्यान रखना चाहिये कि आत्मविश्वास और दृढनिश्चय से कोई भी
बिगडा काम फिर से बनाया जा सकता है । हमें यह भी याद रखना चाहिये कि, उस समय कोई
कंप्यूटर जैसे साधन नहीं थे । हजार पन्ने हाथसे दोबारा लिखना आसान काम नहीं था ।
एक बात और; थॉमस ने अपने मित्र जॉन से कुछ भी कडवीं बातें नहीं कही । उनकी मित्रता
उस घटना के बाद भी टिकी रही । क्या हम सब ये बातें नहीं सीख सकते?
संगीता
जोशी
sanjoshi729@gmail.com Bal Vikas---1.